रोबोटिक प्रशिक्षक की मदद से दिव्यांगता होगी दूर

दिल्ली: किसी भी व्यक्ति में दिव्यांगता होने के कई अलग-अलग कारण होते हैं। कई बार अवस्था और उम्र की बीमारियों की वजह से, को कई बार शारीरिक विकृतियों, दुर्घटनाओं जैसे स्ट्रोक या फिर पोलियो इत्यादि बीमारी के कारण आती है। भारत में आज यह एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उपस्थित है। मेडिकल साइंस इस दिशा में प्रयासरत है कि दिव्यांगता को कैसे खत्म किया जा सके। पोलियो जैसी बीमारियों के निवारण के लिए तो अभियान चल ही रहे हैं और काफी हद तक सफलता पाई जा चुकी है। परंतु जो आज अंग दिव्यांगता से पीड़ित हैं, उन्हें इससे लड़ने और सामान्य जीवन की ओर बढ़ने की राह और सरल करने के लिए विज्ञान प्रौद्योगिकी और तकनीकों का भी उपयोग हो रहा है। दिव्यांगता अथवा किसी कारण शिथिल अंग, जो उचित ढंग से कार्य न कर रहे हो। लेकिन आज उन अंगों को वापस सक्रिय बनाने के लिए फिजियोथेरेपी का सहारा लिया जाता है।

फिजियोथेरेपी और प्रौद्योगिकी है सहायक

पिछले कुछ वर्षों में निचले अंगों के पुनर्वास के लिए रोबोटिक उपकरणों को डिजाइन करने का चलन बढ़ा है। रोबोटिक पुनर्वास में, चिकित्सक को केवल पर्यवेक्षण और उपकरण को लगाने या प्रदान करने की आवश्यकता होती है। निचले अंगों का पुनर्वास, विशेष रूप से चलने-फिरने की स्थिति में सुधार होने में काफी समय लगता है।

आईआईटी जोधपुर द्वारा डिजाइन रोबोटिक प्रशिक्षक

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने ऐसा रोबोटिक प्रशिक्षक डिजाइन किया है, जिसका उपयोग निचले अंगों की अक्षमताओं के इलाज के लिए की जाने वाली फिजियोथेरेपी में किया जा सकता है।
इस अध्ययन के निष्कर्ष इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस्ड रोबोटिक सिस्टम्स में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में डॉ जयंत कुमार मोहंता, सहायक प्रोफेसर, मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी जोधपुर, के साथ अन्य शोधकर्ता शामिल हैं।

डॉ मोहंता बताते हैं कि “उपचार के सही क्रम को क्रियान्वित करने पर पूर्ण पुनर्वास संभव है। रोबोट बिना थके इसे करने में सक्षम होंगे। रोबोट प्रशिक्षक पहनने योग्य उपकरण की तरह होंगे, जैसे कि एक्सोस्केलेटन, जो पैर को सहारा देता है। यह अंगों की गति के लिए समानांतर सामंजस्य के आधार पर कार्य करता है। इस नये डिजाइन ने गति उपचारों को एक बड़ा आयाम दिया है।’’

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