सहायक अध्यापकों की बीएड की डिग्री अमान्य मानते हुए आरोप पत्र देने का मामला, विशेष याचिकाएं निस्तारित

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट में शिक्षा विभाग में नौकरी पाने वाले 14 सहायक अध्यापकों ने राज्य सरकार द्वारा उनकी बीएड की डिग्री अमान्य ठहराते हुए जनपद रुद्रप्रयाग में उनके खिलाफ जारी आरोप पत्रों को चुनौती देती विशेष याचिकाओं पर सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी व न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने याचिकाओं को निस्तारित करते हुए याचिकाकर्ताओं से आरोप पत्र का जवाब देने के साथ ही राज्य सरकार को निष्पक्ष जांच कर कार्रवाई करने के निर्देश जारी किए हैं.

बीएड की डिग्री अमान्य ठहराने का है मामला: मामले के अनुसार सेवानिवृत्त सहायक अध्यापक दिनेश चंद चमोली व कई अन्य ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि उन्होंने वर्ष 1989 में और कुछ लोगों ने 1994-95 में बीएड की डिग्री कानपुर से ली थी. जिसके बाद उनके प्रमाण पत्रों की जांच के उपरांत उन्हें नियुक्ति दी गई थी. याचिकाकर्ता का कहना है अब रिटायरमेंट के आसपास राज्य सरकार के द्वारा उनके खिलाफ आरोप पत्र तय कर मुकदमे दर्ज किए गए हैं कि उनकी डिग्री फर्जी है.

याचिकाकर्ता ने ये कहा: याचिकाकर्ता का कहना है कि जिस संस्थान से उन्होंने बीएड किया है, वह शिक्षण संस्थान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त विद्यालय की सूची में शामिल नहीं है. जबकि नियुक्ति के समय पर उनके दस्तावेजों की जांच की गई थी. वर्ष 2020 में फर्जी शिक्षक का मामला कोर्ट में आया, तो उच्च न्यायलय ने सभी शिक्षकों के दस्तावेजों की जांच करने को कहा. उसके बाद भी उनके दस्तावेज सही पाए गए

राज्य सरकार ने ये कहा: अब राज्य सरकार यह कह रही है कि जहां से उनके द्वारा यह डिग्री ली गयी है, यह यूजीसी के मानकों के अनुरूप नहीं है. जिसने यह डिग्री उन्हें दी थी वह विश्वविद्यालय उससे एफिलेटेड नहीं था. इसलिए इनकी डिग्री अमान्य अमान्य. जबकि याचिकर्ताओं की तरफ से कहा कहा गया कि जब उनकी नियुक्ति हुई थी, तब से अब तक उनके शैक्षणिक दस्तावेजों की कई बार जांच हो चुकी है.

कई शिक्षक रिटायर हो चुके तो कई होने वाले हैं: जांच के बाद उन्हें सेवा करने का मौका दिया गया. अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं. अब सरकार फिर से उनके शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच कर उन्हें आरोप पत्र जारी कर जवाब मांग रही रही है. जबकि वे कई वर्ष पहले सेवानिवृत्त हो चुके, कुछ की डेथ हो चुकी और कुछ सेवानिवृत्त होने वाले हैं. अब आरोप पत्र दिया जा रहा है. यह अपने आप में उन्हें सेवा कार्यकाल पूर्ण करने के बाद अपमानित करने जैसा है. जबकि सेवा के दौरान उनके समस्त शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच विभाग ने पूर्व में की थी.