Thursday, November 21, 2024
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‘शेरनी’ की असली दहाड़ फ़िल्म की सादगी, बारीक़ी और विद्या बालन की अदाकारी

दिल्ली : विद्या बालन (Vidya Balan) की एक मीडिया हाउस से हुई बातचीत में निर्देशक अमित मसुरकर के बारे में एक बात कही थी। उन्हें जंगलों से बहुत प्यार है और इसीलिए न्यूटन के बाद वो एक बार फिर जंगल पहुंच गये। विद्या ने भले ही यह बात हल्के-फुल्के अंदाज़ में कही हो, मगर शेरनी देखने के बाद इस बात की संजीदगी साफ़-तौर समझ आती है। जंगल और इंसान के बीच संघर्ष की कई कहानियां हमने पहले भी पर्दे पर देखी हैं। मगर, इन कहानियों को सिनेमाई कारोबार के लिहाज़ से चमकीला बनाने के लिए इतना बर्क चढ़ा दिया जाता रहा है कि असल मुद्दा कहीं नेपथ्य में चला जाता है। ‘शेरनी’ की असली दहाड़ इसकी सादगी और उन बारीक़ियों में है, जिसे अमित मसुरकर ने ‘मैन वर्सेज़ एनिमल’ की इस कहानी को दिखाने में इस्तेमाल किया है। बिना किसी शोर-शराबे और हंगामे के फ़िल्म मुद्दे की बात करती है।

जहां चोट करनी होती है, वहां चोट करती है और इस चोट के निशानों का मंथन दर्शक के हवाले छोड़ जाती है। फ़िल्म में एक संवाद है- जंगल कितना भी बड़ा हो, शेरनी अपना रास्ता खोज ही लेती है। शेरनी तब क्या करेगी, जब उसके रास्ते में हाइवे, तांबे की खदान और कंक्रीट के जंगल आ जाएंगे?

हिंदी सिनेमा में ऐसी फ़िल्में तो बनी हैं, जिनमें मुख्य किरदार को फॉरेस्ट ऑफ़िसर दिखाया गया हो, मगर वन विभाग की कार्यशैली पर सम्भवत: पहली बार कैमरा घुमाया गया है। विद्या फ़िल्म में विद्या विंसेंट नाम की डीएफओ (डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफ़िसर) के किरदार में हैं।

4-5 साल की ऑफ़िस पोस्टिंग के बाद विद्या को फील्ड  में तैनाती मिलती है। जिस इलाक़े की वो अधिकारी हैं, उसमें एक शेरनी (बाघिन) आदमखोर हो जाती है। आस-पास के दो गांव वालों को मार चुकी है।

वन विभाग ने शेरनी की गतिविधियों को पकड़ने के लिए जो कैमरे लगाये, उसकी फुटेज से पता चलता है कि वो टी-12 शेरनी है। वन विभाग तमाम कोशिशों और दफ़्तर में यज्ञ-हवन के बाद भी शातिर शेरनी को पकड़ने में नाकाम रहता है। इधर, राज्य में विधान सभा चुनावों की दस्तक हो गयी है। स्थानीय विधायक जीके सिंह को बैठे-बिठाये मुद्दा मिल जाता है।

सरकारी महकमे की नाकामी को भुनाकर इलाक़े के लोगों का दिल और फिर वोट जीतने के लिए वो एक प्राइवेट शिकारी रंजन राजहंस यानी पिंटू भैया की मदद से बाघिन का शिकार करना चाहता है। वहीं, पूर्व विधायक पीके सिंह आदमखोर बाघिन को मारने में वन विभाग की नाकामी को सरकारी साजिश मानता है और लोगों को जीके सिंह के ख़िलाफ़ भड़काता है।

विद्या विंसेंट किसी भी तरह आदमखोर बाघिन के शिकार के पक्ष में नहीं है। वो अपने सीनियर्स से भिड़ जाती है। इस बीच पता चलता है कि बाघिन के दो बच्चे भी हैं। सीनियर अधिकारी किसी तरह इस मुसीबत से पीछा छुड़ाना चाहते हैं, चाहे बाघिन को मारना पड़े।इसमें सियासी स्वीकृति भी शामिल है। अब विद्या विंसेंट के सामने सबसे बड़ी चुनौती बाघिन और उसके दोनों बच्चों को बचाने की है, जिसमें उसकी मदद जीव विज्ञान के प्रोफेसर हसन नूरानी, कुछ गांव वाले और महकमे के कुछ कर्मचारी कर रहे हैं। एक लाइन में सुनेंगे तो शेरनी की कहानी आपको सुनी-सुनाई लगेगी। विकास के बड़े-बड़े दावों वाली चार कॉलम की ख़बरों के बीच अख़बारों में अक्सर ऐसी कहानियां एक कॉलम में छपी हुई मिल जाती हैं। मगर, आस्था टीकू के स्क्रीनप्ले में इसकी जो डिटेलिंग है, वो बांधे रखती है।

 

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