नोटबंदी के 6 साल बाद Supreme Court का बड़ा फैसला आया

दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नोटबंदी (demonetisation) से जुड़ी 56 याचिकाओं पर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने (Supreme Court) कहा कि मोदी (PM Modi)  सरकार की निर्णय़ प्रक्रिया में कोई खामी नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से नोटबंदी (Notes Ban) के खिलाफ याचिकाओं को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया कि आरबीआई और सरकार के बीच करीब 6 महीने से इस पर बातचीत चल रही थी। इस फैसले में आरबीआई (RBI) एक्ट के सेक्शन  26(2) का पूरी तरह से पालन किया गया। ऐसा नहीं कि कुछ सीरीज के ही नोटों को वापस लिया जा सकता है। 500 औऱ 1000 रुपये के पुराने नोटों (legal currency) को भी वापस लिया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आरबीआई को 7 नवंबर को एक नोटिस दिया जाता है औऱ इस पर आनन-फानन में मुहर लगा दी जाती है।

सरकार का इस याचिका में लगातार कहना था कि यह नीतिगत फैसला था, सरकार की मंशा काला धन रोकने औऱ भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाने की थी। उसका कहना है कि नोटबंदी कितनी सफल रही है या नहीं, यह अलग मसला है। सरकार ने तमाम परिस्थितियों को देखते हुए आर्थिक फैसला लिया था और इसमें पूरी तरह वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया गया था। इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट की क्लीनचिट सरकार के लिए बड़ी राहत देने वाली है। विपक्षी दल लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनाव में नोटबंदी (Supreme Court) से जनता को परेशानी और अर्थव्यवस्था में गिरावट का मुद्दा उठाते रहे हैं, हालांकि राजनीतिक तौर पर भी विपक्षी दलों को कोई फायदा नहीं मिला। अब कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न  ये निर्णय अतार्किक था और न ही आनुपातिकता के सिद्धांत के विरुद्ध था। केंद्र सरकार और तत्कालीन रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन की अगुवाई वाले आरबीआई के बीच पर्याप्त विचार विमर्श हुआ था। हालांकि पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagratna) का मत अन्य चार न्यायाधीशों से अलग था। उनका कहना है कि नोटबंदी पूरी तरह गैरकानूनी थी। इस मामले को चिदंबरम के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अन्य ने चुनौती दी थी।

यह भी पढ़े: बिना मास्क के आज से अदालतो में एंट्री नहीं मिलेगी ये हुए आदेश जारी