माँ की ममता को कागज़ पर, कोई लिख सकता है क्या?
हमें जितनी खुशियाँ माँ देती है, कोई दे सकता है क्या?
नौ महीने रख गर्भ में अपने, जनम हमें वो देती है
जितनी पीड़ा माँ सहती है, कोई सह सकता है क्या?
माँ की ममता को कागज़ पर, कोई लिख सकता है क्या?
पकड़ाकर अपनी उंगली वो, चलना हमें सिखाती है।
भले – बुरे के बारे में भी, माँ ही तो बतलाती है।।
चाहे ग़लती लाख हो हमसे, उसकी नज़र में हम ही ठीक
यही भरोसा कोई इंसां, हम पर कर सकता है क्या?
माँ की ममता को कागज़ पर, कोई लिख सकता है क्या?
कभी – कभी मन करता है, माँ की गोद में सो जाऊँ।
लिपट के पैरों से रोऊँ और, फ़िर से बच्चा हो जाऊँ।।
माँ जो सिर पर हाँथ फेर दे, दुःख – दर्द दूर सब हो जाये
कोई वैद्य – चिकित्सक ऐसा, जादू कर सकता है क्या?
माँ की ममता को कागज़ पर, कोई लिख सकता है क्या?
जनम लूँ फ़िर मैं इसी कोख से, प्रभु मुझपर उपकार करें।
कभी कोई माँ दुःखी ना हो, सब अपनी माँ को प्यार करें।।
आपने तो धरती पर आकर, दो-दो माओं का प्यार लिया
दो की छोड़ो एक का भी सुख, स्वर्ग में मिल सकता है क्या?
माँ की ममता को कागज़ पर, कोई लिख सकता है क्या?
संदीप यादव
अधिवक्ता
उच्च न्यायालय, इलाहाबाद
संपर्क:- 9580420999