उत्तरकाशी: यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बड़कोट और धरासू के बीच निर्माणाधीन सिलक्यारा टनल में फंसे मजदूरों के मामले में राहतभरी खबर है। फिलहाल सभी 40 मजदूर सुरक्षित हैं। रेस्क्यू टीमों ने सोमवार को शाम तक मलबा हटाकर 20 मीटर रास्ता और बना लिया था। अब रेस्क्यू टीमों उनसे तकरीबन 40 मीटर की दूरी पर हैैं। उम्मीद की जा रही है कि मंगलवार दोपहर अथवा शाम तक उन्हें निकालने का काम शुरू हो जाएगा। फिलहाल टनल में फंसे इन मजदूरों ने खाने की मांग की। टनल में पानी के लिए बिछाई गई पाइप लाइन के जरिए कंप्रेसर से दबाव बनाकर खाने के पैकेट टनल में फंसे मजदूरों तक भेजे गए। इसी पाइप लाइन के जरिए मजदूरों तक ऑक्सीजन की सप्लाई भी की जा रही है। वॉकी-टॉकी के माध्यम से टनल में फंसे मजदूरों से संपर्क किया गया है। मलबा हटाने के लिए हैवी एक्सकैवेटर मशीनों को मौके पर जुटाया गया है। इस बीच, एसडीआरएफ और एनडीआरएफ के साथ ही आईटीबीपी को भी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाया गया है। एसडीआरएफ के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा खुद टीम के साथ मौके पर ऑपरेशन में जुटे हैं।
मुख्यमंत्री ने मौके पर पहुंचकर लिया हालात का जायजा, कहा-सभी को सुरक्षित निकालना सर्वोच्च प्राथमिकता
सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सिलक्यारा पहुंचे और टनल में चलाए जा रहे राहत एवं बचाव कार्य का जायजा लिया। उन्होंने अधिकारियों के साथ हालात की समीक्षा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि सुरंग में फंसे सभी लोगों को सकुशल बाहर निकालना सर्वोच्च प्राथमिकता है। उन्होंने निर्देश दिए कि राहत एवं बचाव कार्यों में किसी तरह की कोताही न हो, इसके लिए लगातार निगरानी की जाए। मुख्यमंत्री ने प्रभावितों के परिजनों को आश्वस्त किया कि सुरंग में फंसे लोगों को सकुशल बाहर निकालने के लिए राज्य और केंद्र दोनों सरकारें गंभीर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी इस संबंध में बात की है। प्रधानमंत्री ने बचाव और राहत कार्यों में प्रदेश सरकार को हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया है।
भू-धंसाव से बंद हो गई यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन टनल, फंसे हैं 8 राज्यों के श्रमिक
गौरतलब है कि रविवार को दीपावली की सुबह बड़कोट और धरासू के बीच सिल्क्यारा के समीप यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगभग 4,531 मीटर लंबी निर्माणाधीन सुरंग में सिलक्यारा की तरफ भू-धसाव हो गया। इस टनल का सिलक्यारा की तरफ से 2,340 मीटर और बड़कोट की तरफ से 1,750 मी0 निर्माण हो चुका है। टनल में सिलक्यारा की तरफ से लगभग 270 मीटर अंदर लगभग 30 मीटर क्षेत्र में ऊपर से मलबा गिरा, जिससे टनल बंद हो गई और वहां काम कर रहे 40 श्रमिक फंस गए। निर्माण एजेंसी एनएचआईडीसीएल के अनुसार, टनल में उत्तराखंड के 2, हिमाचल का 1, बिहार के 4, पश्चिमी बंगाल के 3, उत्तर प्रदेश के 8, उड़ीसा के 5, झारखंड के 15 और असम के 2 मजदूर फंसे हैं। टनल के अंदर अस्थायी रूप से ऑक्सीजन सप्लाई कंप्रेसर के जरिए वाटर पाईप लाईन के माध्यम से लगातार की जा रही है। मौके पर ऑक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन सिलेंडर स्टोर किए गए हैं। साथ ही 200 एमएम पाइप के माध्यम से भूस्खलन एरिया में वेंटीलेशन सुनिश्चित किया गया है। उक्त के अतिरिक्त शॉर्ट क्रिट एक्पोज सरफेस का शॉर्ट क्रिट के माध्यम से स्टेबलाइजेशन किया जा रहा है।
राहत एवं बचाव कार्यों लगाए गए हैं 164 जवान, इमरजेंसी के लिए बनाया हेलीपैड
स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर्स की टीमें दवा और एंबुलेंस के साथ टनल के मुहाने पर तैनात की गई हैं। आसपास के जिलों के अस्पतालों और ऋषिकेश एम्स को भी हाईअलर्ट पर रखा गया है। मौके पर मलबा हटाकर पहुंच बनाने के लिए लखवाड़ हाईड्रो प्रोजेक्ट से एक हॉरिजेंटल ड्रिल मशीन भी लगाई गई है। हालांकि, वहां मलबा भी आ रहा है, जिसे देखते हुए शॉर्ट क्रिट का कार्य गतिमान है। रेस्क्यू ऑपरेशन के संचालन के लिए उत्तरकाशी के डीएम अभिषेक रूहेला, एसपी अर्पण यदुवंशी और एसडीआरएफ कमांडेंट मणिकांत मिश्रा समेत कई अधिकारी मौजूद हैं। स्थानीय पुलिस और फायर सर्विस के 35, एनडीआरएफ के 35, एसडीआरएफ के 24, पुलिस वायरलेस यूनिट के 6 व्यक्ति, स्वास्थ्य विभाग के 04 डॉक्टर, 11 एंबुलेंस व 2 मेडिकल टीम, रेल विकास निगम के 2, आईटीबीपी 12वीं वाहिनी और 35वीं वाहिनी के 50 जवानों समेत कुल 164 कार्मिक रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाए गए हैं। इसके अलावा पीडब्ल्यूडी ने किसी भी आपात स्थिति के लिए घटनास्थल से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्यालना के समीप अस्थायी हेलीपैड का निर्माण किया है। चिन्यालीसौड़ हेलीपैड भी राहत कार्यों के लिए तैयार रखा गया है।
छह एजेंसियों के विशेषज्ञों की टीम पहुंची भू-धसाव और भूस्खलन के कारणों की पड़ताल को
इस बीच सरकार ने टनल में हुए भू-धसाव और भूस्खलन के कारणों की पड़ताल रिपोर्ट देने के लिए उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक की अध्यक्षता में एक तकनीकी समिति का गठन किया गया है। इसमें वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान (वाडिया इंस्टीट्यूट), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई), भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग (जीएसआई), भूगर्म एवं खनिकर्म इकाई और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के विशेषज्ञ शामिल किए गए हैं। टीम ने सोमवार को मौके पर पहुंचकर अध्ययन शुरू कर दिया।
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