ये वक़्त भी अजब सा है
फुरसत है पर सुकूं नही
बस रब कुछ ऐसा कर दे तू
इस बार रुका हूँ फिर रुकू नहीं
अपनो को घर में तन्हा छोड़
जुड़ा हुआ था दुनिया भर से
आज अपनो को छुपाये बैठा है
दुनिया न बिखर जाने के डर से
ये डर का खेल ख़त्म कब होगा
बस ये बता की रेहम कब होगा
लड़ तो हम पहले भी रहे थे
क्या है तुझे हमपे विश्वास न था
पर जंग इतनी लंबी चलेगी
हमको भी एहसास न था
अँधेरे अगर घने होंगे
तो दिया जलाएगा इंडिया
हम सब अगर साथ देंगे
तो जीत जाएगा इंडिया
“अनुजा”