पितृ पक्ष कब और कैसे मनाये :-
पितृ पक्ष (श्राद्ध) का आरंभ 29 सितंबर से हो रहा है और समापन 14 अक्टूबर को होगा। ज्योतिषाचार्य राजीव अग्रवाल ने बताया कि पितृ पक्ष में कोई भी नई वस्तु खरीदने और पहनने के लिए शास्त्रों में मना किया गया है। पितरों का श्राद्ध करते हुए ब्राह्मणों को भोजन करवाने से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
पितृ पक्ष प्रारंभ दिनांक और समय:-
पितृ पक्ष गणपति बप्पा को विदा करते ही आरंभ हो जाएगा। यानी कि अनंद चतुर्दशी के अगले दिन से पितृ पक्ष का आरंभ हो जाएगा। पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध 29 सितंबर को होगा और पितृ अमावस्या 14 अक्टूबर को होगी। यानी कि पितृ पक्ष का आरंभ 29 सितंबर को होगा और समापन 14 अक्टूबर को हो जाएगा। पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध किए जाने की परंपरा है। जिन लोगों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती है और उन लोगों का श्राद्ध अमावस्या तिथि के दिन किया जाता है।
पितृ पक्ष की सभी तिथियां
पितृ पक्ष का पहला दिन: 29 सितंबर, पूर्णिमा श्राद्ध, प्रतिपदा श्राद्ध
पितृ पक्ष का दूसरा दिन: 30 सितंबर, द्वितीया श्राद्ध
पितृ पक्ष का तीसरा दिन: 1 अक्टूबर, तृतीया श्राद्ध
पितृ पक्ष का चौथा दिन: 2 अक्टूबर, चतुर्थी श्राद्ध
पितृ पक्ष का पांचवा दिन: 3 अक्टूबर, पंचमी श्राद्ध
पितृ पक्ष का छठा दिन: 4 अक्टूबर, षष्ठी श्राद्ध
पितृ पक्ष का सातवां दिन: 5 अक्टूबर, सप्तमी श्राद्ध
पितृ पक्ष का आठवां दिन: 6 अक्टूबर, अष्टमी श्राद्ध
पितृ पक्ष का नौवां दिन: 7 अक्टूबर, नवमी श्राद्ध
पितृ पक्ष का दसवां दिन: 8 अक्टूबर, दशमी श्राद्ध
पितृ पक्ष का 11वां दिन: 9 अक्टूबर, एकादशी श्राद्ध
पितृ पक्ष का 12वां दिन: 10 अक्टूबर, मघा श्राद्ध
पितृ पक्ष का 13वां दिन: 11 अक्टूबर, द्वादशी श्राद्ध
पितृ पक्ष का 14वां दिन: 12 अक्टूबर, त्रयोदशी श्राद्ध
पितृ पक्ष का 15वां दिन: 13 अक्टूबर, चतुर्दशी श्राद्ध
सर्वपितृ अमावस्या: 14 अक्टूबर, शनिवार
पितृ पक्ष में तिथि का महत्व –
पितृ पक्ष में तिथियों का विशेष महत्व होता है। जैसे जिन पूर्वजों की मृत्यु जिस तिथि पर होती है उसका श्राद्ध उसी तिथि पर किया जाता है। जिन लोगों का निधन अगर द्वितीया तिथि को हुआ है तो उनका श्राद्ध भी उसी तिथि को किया जाता है। जिनकी मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध भी पितृ पक्ष की नवमी तिथि को किया जाएगा।
ब्राह्मणों को भोजन कराने के नियम –
पितृ पक्ष में किसी ब्राह्मण को आदर और सम्मानपूर्वक घर बुलाएं और भोजन कराएं। ब्राह्मणों को भोजन कराने से पहले परिवार के किसी सदस्य को न दें। ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद गाय, कुत्ते, कौवे को भोजन करवाएं। श्राद्ध का आरंभ दोपहर के वक्त किया जाना शास्त्रों में सही बताया गया है। ब्राह्मणों के सहयोग से मंत्रोच्चार के साथ श्राद्ध आरंभ करें और उसके बाद जल से तर्पण करें। उसके बाद पितरों का ध्यान करते हुए उनसे भोजन स्वीकार करने की प्रार्थना करनी चाहिए।
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