देहरादून: 10 सितंबर से शुरू हो रहे हैं श्राद्ध, पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है। इस दिन पहला श्राद्ध कहा जाता है, जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है। अश्विनी मास में 15 दिन श्राद्ध के लिए माने गए हैं। पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक का समय पितरों को याद करने के लिए मनाया गया है। सबसे पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है। इस दिन पहला श्राद्ध कहा जाता है, जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है। इन 15 दिनों में सभी अपने पितरों का उनकी निश्चित तिथि पर तर्पण, श्राद्ध करते हैं। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देकर प्रस्थान करते हैं। अमावस्या के दिन पितरों को विदा दी जाती है। 11 सितम्बर को सूर्योदय के साथ हो आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि लग रही है अत: पितृ पक्ष का आरम्भ 11 सितम्बर को हो जाएगा।
परंतु पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म भाद्र पद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को ही किया जाता है जो 10 सितंबर दिन शनिवार को ही है। इसलिए महालय का आरम्भ 10 सितंबर शनिवार से ही हो जाएगा। जिस तिथि में पितर देव दिवंगत हुए होते है उसी तिथि पर पितृपक्ष में तिथियों के अनुसार श्राद्ध कर्म एवं तर्पण किया जाना शास्त्र सम्मत है। संतान की दीर्घायु एवं कुशलता की कामना से किया जाने वाला परम पुनीत जियुतिया ( जियुतपुत्रिका ) का व्रत पूजन अष्टमी श्राद्ध के दिन किया जाता है, इसलिए जितिया का व्रत रविवार 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा और इसका पारण सोमवार 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा. जबकि सोमवार 19 सितंबर की सुबह 6.10 पर सूर्योदय के बाद माताएं व्रत का पारण कर सकती है इस प्रकार 11 सितम्बर से शुरू हो रहे पितृ पक्ष, 25 सितंबर को समाप्त होंगे।
1 :- पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण 10 सितंबर दिन शनिवार ।
2 :- प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण 11 सितंबर दिन रविवार ।
3 :- द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण 12 सितम्बर दिन सोमवार ।
4 :- तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण 13 सितंबर दिन मंगलवार ।
5 :- चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण 14 सितंबर दिन बुधवार ।
6 :- पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण 15 सितंबर दिन गुरुवार ।
7 :- षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण 16 सितंबर दिन शुक्रवार ।
8 :- सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण 17 सितंबर दिन शनिवार ।
9 :- अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण 18 सितंबर दिन रविवार ।
10 :- नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण 19 सितंबर दिन सोमवार ।
11 :- दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण 20 सितंबर दिन मंगलवार ।
12 :- एकादशी का श्राद्ध तर्पण 21 सितंबर दिन बुधवार ।
13 :- द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण 22 सितंबर दिन गुरुवार ।
14 :- त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण 23 सितंबर दिन शुक्रवार ।
15 :- चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण 24 सितंबर दिन शनिवार ।
16 :- अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण 25 सितंबर दिन रविवार ।
- जो पुरुष श्राद्ध का दान देकर अथवा श्राद्ध में भोजन करके स्त्री के साथ समागम करता है वह दोषी होता है…उसके पितृ उस दिन से लेकर एक महीने तक उसी के वीर्य में निवास करते हैं इसलिए भूलकर भी उस दिन स्त्री के साथ समागम नहीं करना चाहिए।
- इन दिनों पान नहीं खाना चाहिए। बॉडी मसाज या तेल की मालिश नहीं करना चाहिए। किसी और का खाना नहीं खाना चाहिए।
- इन दिनों खाने में चना, मसूर, काला जीरा, काले उड़द, काला नमक, राई, सरसों आदि वर्जित मानी गई है अत: खाने में इनका प्रयोग ना करें ।
- श्राद्ध के दौरान क्षौर कर्म यानी बाल कटवाना, शेविंग करवाना या नाखून काटना आदि भी नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है।
- श्राद्ध में करने योग्य- कुशा, श्राद्धस्थली की स्वच्छता, उदारता से भोजन आदि की व्यवस्था और ब्राह्मण की उपस्थिति।
- श्राद्ध के लिए उचित बातें – सफाई, शांत चित्त, क्रोध न करें और धैर्य से पूजन-पाठ करें। हड़बड़ी व जल्दबाजी नहीं करें।
- श्राद्ध के लिए उचित द्रव्य हैं – तिल, चावल, जौ, जल, मूल (जड़युक्त सब्जी) और फल।
- 3 चीजें शुद्धिकारक हैं – पुत्री के पुत्र को भोजन, तिल और नेपाली कम्बल।
- श्राद्ध के दिनों में तांबे के बर्तनों का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए।
- पितरों का श्राद्ध कर्म या पिंडदान आदि कार्य करते समय उन्हें कमल, मालती, जूही, चम्पा के पुष्प अर्पित करें।
- श्राद्धकाल में पितरों के मंत्र (ऊँ पितृभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम: पितामहेयभ्य: स्वधायीभ्य स्वधा नम: प्रपितामहेयभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम:, अक्षंतपितरोमी पृपंतपितर: पितर: शुनदद्धवम्) का जप करें।
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