लखनऊ: कोरोना वायरस (Corona Virus) जैसी वैश्विक महामारी कोविड-19 के अनलॉक फेज १ के दौरान शिक्षण संस्थान को खोलने की अनुमति दिए जाने के फैसले को ले कर अभिभावक खुश नहीं है । हालाँकि स्कूल खुलने पर छात्रों और शिक्षकों को एक दूसरे के खाने और सामान का इस्तेमाल करने पर रोक रहेगी उसके बाद भी इसको इस फैसले को ले कर अभिवावक सहमत नहीं है । केंद्रीय गृहमंत्रालय ने अनलॉक-1 में शिक्षण संस्थानों को खोलने का फैसला अब राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है।
इसके तहत स्कूल या कॉलेज परिसर में एक दूसरे से बिना हाथ और गले लगे मिलना, कम से कम एक मीटर की दूरी, हर समय मास्क लगना जरूरी बताया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि दोबारा उपयोग में लाए जा सकने वाले मास्क का इस्तेमाल किया जाए। परिसर में रहने के दौरान हर थोड़ी-थोड़ी देर में साबुन से हाथ धोना या फिर हैंड सैनिटाइजर का प्रयोग करना होगा। बार बार अपने हाथों से चेहरा या मास्क न छुएं। घर पहुंचने पर मोबाइन, चाबी या अन्य सामान को सैनिटाइज से साफ करे। इसके साथ ही कैंटीन, प्रार्थना सभा, सेमिनार पर रोक पर रोक लगा दी गयी है।
उधर इस फैसले से न खुश अभिभावकों का का कहना है की केंद्र सरकार का यह फैसला गलत है यही नहीं स्कूलों में कोरोना वायरस (Corona Virus) से लड़ने के प्रयाप्त साधन उपलब्ध नहीं है ऐसे में यह फैसला बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रही है।
लखनऊ से हिमांशु गुप्ता का कहना है कि इस साल बच्चो को स्कूल कॉलेज अगर न खोले जाये साथ ही जैसे ऑनलाइन क्लास हुई है उसी तरह ऑनलाइन परीक्षा भी करवा सकते है । हाल ही में अभी एक इंजीनियरिंग इन्स्टिट्यूट ने ऑनलाइन परीक्षा कारवाई थी और कक्ष निरीक्षक की जगह पर माता या पिता को रखा गया था।बच्चो को इस समय विद्यालय या महाविद्यालय में बिलकल नही भेजना चाहिये और वर्ष 2020 या जब तक कोरोना का एंटी डोज ना तैयार हो तब तक ऑनलाइन पढ़ाई ओर परीक्षा कारवाई जाये । बच्चे देश का भविष्य है उनकी जिन्दगी के साथ खिलवाड़ नही होना चाहिये।
ओम श्री नेत्र का कहना है मै बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में बिलकुल भी नहीं हु जब तक Covid 19 के केस ज़ीरो ना हो जाएं क्योंकि बच्चों से आप इतने सख्त नियम जैसे मास्क लगाए रखना, सोशल दिस्टेंसिंग, बार बार सैनिटाइजर लगाना, बस और वैन में दूर बैठना का पालन नहीं कर सकते वो भी इतनी देर तक इसलिए जब तक बीमारी ये खत्म ना हो तब तक स्कूल नहीं खोलना चाहिए स्कूल ऑनलाइन क्लासेस चला सकते है पूरे साल।
सोशल एक्टिविस्ट वर्तिका तिवारी का कहना है कि बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जाना चाहिए। बच्चों को क्या करने से आप रोकेंगे स्कूल में- साथ खेलने से, बैठने से, कॉपी किताब छूने से, स्टेशनरी छूने से, खेल के सामान आदि छूने से, लाइब्रेरी के इस्तेमाल से…? आप बच्चों को घुलने मिलने से नहीं रोक सकते। इसलिए बेहतर है कि स्कूल न खोले जाएं या उनको स्कूल न भेजा जाए। यदि कोई बच्चा बीमार पड़ा तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा..? वैसे भी अब बरसात का मौसम आ रहा है जिसमें डेंगू, चिकनगुनिया, सर्दी, ज़ुकाम, बुख़ार आदि जैसी बीमारियां आम हैं।
नेहा आनंद लखनऊ कि सोशल एक्टिविस्ट और एक बेटी की माँ कहती है बच्चे एक साल स्कूल नहीं जाएंगे तो उनकी ज़िन्दगी पे कोई असर नहीं पड़ना है। इस समय प्रिऑरिटीज़ करने कि ज़रुरत है और बच्चों कि ज़िन्दगी से बढ़कर कोई प्रायोरिटी नहीं।
इस मुद्दे पर मोना आशीष कुल मै भी नहीं भेजूंगी, किसी भी बच्चे को अगर इन्फेक्शन हुआ तो सारे स्कूल में फैलेगा, सभी बच्चे इन्फेक्टेड होंगे तो मेरा बच्चा कहाँ बच पायेगा इसलिए मैं अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजूंगी।
तोमोशा मुख़र्जी का कहना है कि सभी स्कूल यह कहने के लिए प्रयास करते हैं कि वह … सभी प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर पाएंगे। अधिकांश स्कूल छात्रों को आदर्श संज्ञा से 100 गुना अधिक मानते हैं। छात्र स्टाफ वैन आदि संक्रमण का स्रोत हो सकते हैं, उस स्थिति अत्यधिक जोखिम हो सकता है। बहुत बेहतर होता अगर स्कूल केवल नियंत्रण में स्थिति होने पर ही खोले जाते तो।
प्रशांत त्रिपाठी अभिभावक के तौर पर उनका कहना है कि बच्चो का एक साल हे ख़राब होगा …… बच्चे घर परिवार सही रहेगा तो एक साल कोई बात नहीं।
तो वही अभिभावक पाखी वालिआ बताती है कि स्कूल तो मैं नहीं भेजूंगी अपने बेटे को इस साल है। मगर स्कूल वालों ने हमसे तीन महीने की फीस के साथ कॉपी बुक्स के पैसे ले लिए है।
रेनू दुबे कहती है मैं भी स्कूल भेजने के पक्ष में बिलकुल नहीं हूँ क्युकी लॉकडाउन खत्म हो रहा है ऐसे में धीरे धीरे ये महामारी बढ़ रही है ऐसे में स्कूल में बच्चे बिलकुल भी सोशल डिस्टेंस नहीं बना पाते है ।
पूजा पाठक अभिभावक कहती है स्कूल खोलने की ज़रूरत नहीं है और फीस तो स्कूल ने दबाव बनवा कर जमा करवा ही ली है।
यही नहीं कुछ अभिभावकों का केहना है कि स्कूल खोलने के साथ ही अभिभावकों को लगातार 3 माह की फीस भरने को ले कर स्कूल द्वारा दबाव बनाया जा रहा है। ऐसे में सरकार ने आम जनता को क्या रहत दी है। फ़िलहाल शिक्षण संस्थानों को खोलने का फैसला केंद्र ने अब राज्य सरकारों पर छोड़ दिया हो लेकिन इस पर अंतिम निर्णय अभिभावको का ही होगा।
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